सूरजपुर, 6 जून 2025।
भटगांव तहसील कार्यालय में फौती नामांतरण को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। चुनगड़ी गांव के रामशरण व ग्रामीण द्वारा लगाए गए फर्जी दस्तावेज़ों और भूमाफिया से सांठगांठ के आरोपों ने न केवल तहसील प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया, बल्कि पूरे राजस्व तंत्र की पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगा दिया।
जब यह मामला CGN 24 न्यूज़ चैनल पर उजागर हुआ, तो तहसीलदार कार्यालय भटगांव की ओर से 5 जून को खंडन पत्र एवं वीडियो जारी कर सभी आरोपों को निराधार बताया गया। लेकिन सवाल यह है कि यह सफाई जनता की जिज्ञासा शांत कर पाई है, या फिर यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक औपचारिकता थी?
राजस्व विभाग की दलील क्या कहती है?
खंडन पत्र के मुताबिक,
रामकिसुन सारथी ने अपने पिता फेकू राम की मृत्यु के बाद 23 फरवरी 2024 को नामांतरण हेतु आवेदन किया।
दस्तावेजों के साथ आवेदन भुइंया पोर्टल पर दर्ज किया गया और ग्राम चुनगड़ी में विधिवत इश्तिहार चस्पा किया गया।
आपत्ति न मिलने पर 18 मार्च को उनके वारिसों – रामकिशोर, मुनिया और बेवा राजमनिया – के नाम नामांतरण आदेश पारित किया गया।
दूसरे प्रकरण में सहसराम ने अपने पिता धनस्वरूप के नामांतरण हेतु आवेदन दिया। यह आदेश 31 मई 2024 को पारित किया गया और वारिसों – जुगमेन, सहसराम, अरतराम, सुनीलाल और लीलावती – के नाम जमीन दर्ज हुई। तहसीलदार के अनुसार, दोनों ही मामलों में पटवारी जांच रिपोर्ट और दस्तावेजों की पुष्टि के बाद ही आदेश दिए गए।
लेकिन रामशरण व वर्तमान सरपंच और जिनका साइन हुआ है इश्तिहार में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि न तो पंचायत में इश्तिहार चस्पा हुआ, न कोई तिथि अंकित की गई और न ही अधिकारी के हस्ताक्षर मौजूद थे। उनका आरोप है कि भूमाफियाओं की मिलीभगत से पुश्तैनी जमीन हड़पी गई।

सवाल अब भी कायम हैं…
यदि सभी प्रक्रिया सही थी, तो आम सूचना (इश्तिहार) की पारदर्शिता पर सवाल क्यों उठे?
शिकायतकर्ता को न्यायालय जाने की नौबत क्यों आई?
राजस्व अमले पर पहले से मौजूद अविश्वास इस मामले में और क्यों गहराया?
लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत समयबद्ध निराकरण के दावे बार-बार फाइलों की देरी और प्रक्रियात्मक अस्पष्टता के आगे बेबस नजर आते हैं।
खंडन से संतोष नहीं, समाधान चाहिए
तहसील कार्यालय ने भले ही सफाई दी हो, लेकिन जनता का भरोसा सिर्फ कागजी तर्कों से नहीं, जमीनी पारदर्शिता और न्यायिक निष्पक्षता से बहाल होगा। अगर शिकायतकर्ता की बातों में झोल है, तो यह भी न्यायालय सिद्ध करेगा। लेकिन अगर प्रशासनिक प्रक्रिया में चूक हुई है, तो यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, पूरे राजस्व तंत्र की साख का प्रश्न बन जाएगा।
फिलहाल, ग्रामीण के निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं…
क्षेत्रीय जनता की निगाहें आगामी फैसले और प्रशासन की जवाबदेही पर टिकी हैं। देखना यह है कि क्या इस विवाद का निपटारा कानूनी न्याय के रास्ते होता है या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह फाइलों और खंडनों के नीचे दबकर रह जाएगा।
