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4 Aug 2025, Mon

समाधान शिविर या सरकारी तमाशा? ग्रामीणों की उम्मीदों को लगा झटका!


बलरामपुर, 14 मई 2025/ सरकार भले ही “सुशासन तिहार” के नाम पर जिलेभर में समाधान शिविरों का आयोजन कर अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल उलट दिखाई दे रही है। विकासखंड बलरामपुर के ग्राम जतरो, वाड्रफनगर के रघुनाथनगर और राजपुर के परसागुड़ी में आयोजित समाधान शिविरों में भले ही भारी भीड़ उमड़ी, लेकिन समस्याओं का समाधान उतनी तत्परता और पारदर्शिता से नहीं हुआ, जैसी दावा किया जा रहा है।

शिविरों में आए कई ग्रामीणों का कहना था कि वे अपनी उम्मीदों के साथ लंबी दूरी तय कर शिविरों में पहुँचे थे, लेकिन वहां उन्हें सिर्फ इंतज़ार, अनसुनी शिकायतें और खानापूर्ति का नज़ारा मिला। कई मामलों में हितग्राहियों के आवेदन या तो अधूरे बताए गए या फिर “आगे की प्रक्रिया में” डाल दिए गए। कुछ ग्रामीणों को योजनाओं की जानकारी देने वाले स्टॉल पर स्पष्ट जवाब नहीं मिला, और कुछ को यह कहकर लौटा दिया गया कि “इस योजना का लाभ अगले शिविर में मिलेगा”।

चुनिंदा चेहरों को ही मिला लाभ?

हितग्राही मूलक सामग्री के वितरण को लेकर भी ग्रामीणों में नाराजगी देखने को मिली। ग्रामीणों का आरोप है कि लाभ वितरण की सूची पहले से तय थी और उसी के मुताबिक मंच से वितरण किया गया। वास्तविक जरूरतमंदों को फिर से ‘अगली बार’ का आश्वासन दे दिया गया। पारदर्शिता की बात करने वाला प्रशासन खुद अपने कामकाज में भेदभाव और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता नजर आया।

“शिविर में समाधान कम, प्रचार ज्यादा”

स्थानीय लोगों ने बताया कि शिविर में समस्याओं के समाधान से अधिक जोर प्रचार और फोटो सेशन पर दिया गया। मंच पर जनप्रतिनिधि भाषण देते रहे, फोटो खिंचवाते रहे, लेकिन पंजीयन काउंटर पर खड़े ग्रामीण धूप में घंटों लाइन में लगकर परेशान होते रहे। कई बुज़ुर्ग महिलाएं और वृद्ध किसान बिना समाधान के निराश लौट गए।

विपक्ष ने भी साधा निशाना

विपक्षी नेताओं ने इन शिविरों को “सरकारी तमाशा” बताते हुए कहा कि यह शिविर जनता की समस्याएं हल करने नहीं, बल्कि आंकड़े गढ़ने और सुर्खियाँ बटोरने के लिए लगाए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जिन योजनाओं का लाभ वर्षों से नहीं मिल पा रहा है, उनका प्रचार सिर्फ एक दिन के शिविर में कर देना क्या वास्तविक सुशासन है?

जनता अब पूछ रही सवाल

ग्रामीण जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या सरकार की योजनाएं केवल गिने-चुने लोगों तक ही सीमित रहेंगी? क्या हर बार जनता को केवल दिखावे के समाधान शिविरों से ही संतोष करना होगा? अगर समस्याओं का समाधान गाँव में ही संभव है, तो प्रशासनिक तंत्र को बाकी दिनों में निष्क्रिय क्यों रखा जाता है?

निष्कर्ष:
समाधान शिविरों की हकीकत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि महज़ आयोजनों और भाषणों से सुशासन नहीं आता। अगर सरकार वास्तव में जनता के हित में कार्य करना चाहती है, तो उसे केवल एक दिन का “शिविर” नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ईमानदार और जवाबदेह प्रशासनिक व्यवस्था कायम करनी होगी। वरना ऐसे आयोजन केवल फोटो खिंचवाने और आंकड़े दिखाने का साधन बनकर रह जाएंगे – और जनता की समस्याएं वहीं की वहीं रह जाएंगी।