Breaking
2 Aug 2025, Sat

बरन नदी की पुलिया बनी ग्रामीणों की ज़ंजीर — विधायक के 7 किमी दूर घर से भी नहीं पहुंची इंसानियत!

250 बच्चों की शिक्षा, गर्भवती महिलाओं की जान और हज़ारों ग्रामीणों की जिंदगी हर बरसात में दांव पर
अब पुलिया नहीं, प्रतीक्षा की चिता पर जल रही उम्मीदें

बलरामपुर/रघुनाथनगर।
प्रदेश के उत्तर छोर पर बसी रघुनाथनगर-बभनी सड़क की धड़कन — बरन नदी की पुलिया, पिछले एक साल से टूटी पड़ी है। इस पुलिया के टूटने से कई गांव, जैसे चरचरी, बभनी, आदि, मानो राज्य के नक्शे से कट गए हैं।

बरसात आई नहीं कि यहां की दुनिया ठहर जाती है। मिट्टी के सहारे गर्मी किसी तरह काट ली जाती है, लेकिन पानी आते ही ‘प्रशासनिक व्यवस्था’ बह जाती है – ठीक उसी तरह जैसे ग्रामीणों की उम्मीदें।

250 से ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे — विधायक को फर्क नहीं पड़ता

इस पुलिया से होकर रोज़ाना आने-जाने वाले 250 से अधिक छात्र-छात्राएं अब घरों में कैद हैं। ग्रामीणों का कहना है कि एक साल से शिकायत, आवेदन, ज्ञापन सब कुछ विधायक और प्रशासन को सौंपा गया — लेकिन जवाब में सिर्फ मौन और आश्वासन मिला।

क्या प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था एक पुलिया से बंधक बना दी गई है?

7 किलोमीटर दूर रहती हैं विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते— लेकिन दूरी संवेदना में तब्दील नहीं हो पाई

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह पुलिया विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के घर से महज़ 7 किलोमीटर दूर स्थित है। लेकिन अफसोस — ना कभी निरीक्षण हुआ, ना कोई टेंडर जारी हुआ, ना कोई संवेदना दिखाई दी।

ग्रामीणों का तीखा सवाल है:

> “क्या हमें तब सुना जाएगा जब कोई बच्चा पानी में बह जाएगा या गर्भवती महिला दम तोड़ देगी?”
व्हाट्सएप पर शोक संदेश: “बरन नदी की पुलिया का आज निधन हो गया”

आज सुबह से गांवों के व्हाट्सएप ग्रुप में यह शोक संदेश वायरल हो रहा है:

> “लंबे समय से बीमार चल रही बभनी-बरन नदी की पुलिया का 25 जुलाई सुबह 7 बजे निधन हो गया। अंतिम संस्कार में समस्त ग्रामीण शामिल हुए। विधायक जी को सूचना दी गई है, लेकिन वे व्यस्त हैं।”



ये संदेश अब सिर्फ व्यंग्य नहीं, प्रशासनिक लापरवाही का सार्वजनिक प्रमाण बन चुके हैं।

एसडीएम बोले – व्यवस्था करेंगे!

जब इस विषय में वाड्रफनगर के अनुविभागीय अधिकारी से संपर्क किया गया तो उनका कहना था,

> “व्यवस्था के तहत काम कराया जाएगा, आवागमन बंद नहीं रहने देंगे।”


अब सवाल जनता का:

क्या हम हर साल बरसात में कैदियों की तरह जीते रहेंगे?

क्या विधायक का काम सिर्फ चुनाव जीतना है, समस्याओं का हल नहीं?

क्या एक पुलिया की मरम्मत से बड़ी कोई प्राथमिकता है?

और क्या जनता को अपनी समस्याएं अब व्हाट्सएप के शोक संदेशों से जतानी पड़ेंगी?

इस बार पुलिया नहीं टूटी है, भरोसा टूटा है — और अगर कुछ नहीं बदला, तो अगली बरसात से पहले कुछ वोट भी बह जाएंगे।