बलरामपुर (छत्तीसगढ़): राज्य के छत्तीसगढ़-झारखंड सीमा पर रेत माफियाओं का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। रविवार देर रात सनावल थाना क्षेत्र के लिब्रा गांव में ड्यूटी पर निकले पुलिसकर्मी की निर्मम हत्या ने पूरे इलाके को दहला दिया। अवैध रेत खनन की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर माफियाओं ने जानलेवा हमला कर दिया, जिसमें एक बहादुर आरक्षक की मौके पर ही जान चली गई।
कानून व्यवस्था को खुली चुनौती
घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि रेत माफिया कितने बेखौफ हो चुके हैं। जिन पुलिस कर्मियों पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, अब वही अपराधियों के निशाने पर हैं। पुलिस की मौजूदगी में इस तरह की हिंसा यह दर्शाती है कि रेत माफियाओं को न तो कानून का डर है, न प्रशासन का खौफ। सवाल यह उठता है कि जब वर्दी पहने जवान सुरक्षित नहीं हैं, तो आम नागरिकों की सुरक्षा कौन करेगा?

जनता का फूटा गुस्सा, प्रशासन पर सवाल
घटना के बाद से लिब्रा गांव और आसपास के ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कन्हर नदी के किनारे वर्षों से अवैध रेत खनन हो रहा है, लेकिन पुलिस और प्रशासन की भूमिका संदेह के घेरे में है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बार-बार शिकायत के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, उल्टे कई पुलिस अधिकारी माफियाओं से सांठगांठ कर उगाही में लिप्त हैं।
कैबिनेट मंत्री का गृह क्षेत्र भी अछूता नहीं
सनावल क्षेत्र राज्य के कैबिनेट मंत्री रामविचार नेताम का गृहग्राम है, बावजूद इसके यहां रेत माफिया खुलेआम अपनी दबंगई दिखा रहे हैं। यह सरकार की नाकामी नहीं तो और क्या है? जनता अब सवाल कर रही है कि जब मंत्री का क्षेत्र ही सुरक्षित नहीं, तो बाकी जगहों की क्या हालत होगी?
जनप्रतिनिधियों के भी तीखे तेवर
घटना पर जिला पंचायत सदस्य ने प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, “अगर पुलिस और प्रशासन समय रहते कार्रवाई करता, तो आज एक जवान शहीद न होता।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई अफसर रेत माफियाओं से मासिक वसूली करते हैं और इसी वजह से अवैध कारोबार फल-फूल रहा है।
कार्रवाई या लीपापोती?
घटना के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया और कलेक्टर, एसपी, डीएफओ सहित कई आला अधिकारी मौके पर पहुंचे। एसपी ने बताया कि एक संदिग्ध को हिरासत में लिया गया है और बाकी आरोपियों की तलाश जारी है। लेकिन यह सवाल अभी भी जस का तस है—क्या सिर्फ गिरफ्तारी से इस माफिया जाल को तोड़ा जा सकता है?

निष्कर्ष: पुलिस की निष्क्रियता या मिलीभगत?
एक आरक्षक की हत्या कोई साधारण घटना नहीं। यह सिस्टम की खामियों की एक खौफनाक मिसाल है। जब तक पुलिस विभाग अपने भीतर की गंदगी साफ नहीं करता और माफियाओं से सख्ती से नहीं निपटता, तब तक ऐसे कांड होते रहेंगे। यह समय सिर्फ दुख जताने का नहीं, बल्कि कड़ी कार्रवाई का है।
अब वक्त आ गया है कि प्रशासन और पुलिस दोनों को जवाबदेह ठहराया जाए। क्योंकि एक आरक्षक की शहादत सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक करारी चोट है।
